Rajasthan History Facts: दोस्तों क्या आप जानते है की हमारे भारत के राजस्थान राज्य में अनेक वीर प्रतापी शासक हुए है. जैसे की बाप्पा रावल, महाराणा कुम्भा, महाराणा प्रताप, राणा सांगा, राव मालदेव आदि. आज हम इस पोस्ट में चर्चा करेंगे राव चन्द्रसेन की जिन्होंने मारवाड़ पर सन 1562 से 1581 तक शासन किया एवं जिन्होंने मरते दम तक अकबर की स्वाधीनता नहीं स्वीकार की. राव चन्द्रसेन ने अपने 20 वर्षों के शासनकाल में अकबर को नाको चने चबवा के रखे.
राव चंदरसेन और महाराणा प्रताप पुरे हिंदुस्तान में यही दो ऐसे वीर थे जिन्होंने न तो अकबर की अधीनता स्वीकार की और न ही अपने घोड़ो पर शाही दाग लगने दिया। जबकि राव चंदरसेन के भाई राम सिंह, उदय सिंह और रायमल अकबर की अधीनता स्वीकार करके सत्ता का सुख भोगते रहे.
राव चंदरसेन (Rao Chandersen) और अकबर की कहानी
राव चन्द्रसेन को अपने अधीन बनाने के लिए अकबर ने उनके भाई उदयसिंह को जोधपुर का राजा घोषित कर दिया। और हुसैनकुली को सेना लेकर सिवाना पर हमला करने के लिए भेजा,पर उस सेना को चन्द्रसेन के सहयोगी रावल सुखराज और पताई राठौड़ ने जबर्दस्त मात दी। अकबर ने कई बार चन्द्रसेन को दोबारा जोधपुर वापस देने और अपने अधीन बड़ा मनसबदार बनाने का प्रलोभन दिया। पर स्वंतन्त्रता प्रेमी चन्द्रसेन को यह स्वीकार नही था। थक हारकर जलाल खां के नेतृत्व में अकबर ने सिवाना की तरफ एक बड़ी सेना भेजी। लम्बे संघर्ष के बाद एक दिन अवसर पाकर राव चन्द्रसेन ने अपने सहयोगी देवीदास के साथ मुगलो पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में जलाल खान मारा गया और अकबर की शाही सेना को गहरा आघात पहुंचा। अब अकबर ने शाहबाज़ खान के नेतृत्व में शाही सेना दोबारा भेजी और शीघ्र ही देवकोर और दुनाडा पर अधिकार कर लिया तथा सिवाना दुर्ग को घेर लिया और इसके बाद राव चन्द्रसेन सारण के पहाड़ो में चले गए. शाहबाज खां चन्द्रसेन को पकड़ने में असफल रहा।चन्द्रसेन सारण की पहाड़ियों के पश्चात छप्पन की पहाड़ियों पर चले गये परन्तु वे पुनः सारण की पहाड़ी पर आ गये। सारण की पहाड़ियों में स्थित गाँव “सचियाप गाँव” में डूमडा के जागीरदार बैसलदेव राठौड़ ने राव चन्द्रसेन को भोजन के साथ विष दे दिया था इसी कारण सचियाप गाँव (पाली) में 11 जनवरी 1581 में इनका देहांत हो गया। अकबर ने 1581 ई. में राव चन्द्रसेन की मृत्यु के बाद मारवाड़ को खालसा घोषित कर दिया जो 1583 ई. तक रहा। छापामार युद्ध प्रणाली का महत्व स्थापित करने में मेवाड़ शासक महाराणा उदयसिंह के बाद राव चन्द्रसेन द्वितीय शासक थे। राव चन्द्रसेन प्रथम ऐसे शासक थे जिन्होंने रणनिति में दुर्ग के स्थान पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र को अधिक महत्व दिया।
राव चन्द्रसेन ने अकबर की अधीनता क्यों नहीं स्वीकार की?
अकबर जोधपुर का दुर्ग अपने पास रखना चाहता था तथा उसके भाई उदय सिंह का प्रभाव भी मुगल दरबार में बढ़ता जा रहा था। इसलिए चन्द्रसेन ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की।
राव चंदरसेन के बारे में कुछ तथ्य
- इनका कार्यकाल 1562-1581 तक था। इनका समकालीन मुग़ल शासक अकबर थे।
- राव चन्द्रसेन के पिता राव मालदेव एवं माता स्वरूपदेवी थी।
- राव चन्द्रसेन के दो बड़े भाई थे – रामसिंह एवं उदयसिंह।
- राव मालदेव के सबसे छोटे पुत्र होते हुए भी राव चन्द्रसेन मारवाड़ के शासक बने थे।
- राव चन्द्रसेन का राज्याभिषेक 1562 ई. में मेहरानगढ़ दुर्ग में हुआ था।
- राव चन्द्रसेन के उपनाम – ‘मारवाड़ का प्रताप’ , ‘प्रताप का अग्रगामी’ , ‘प्रताप का पथ-प्रदर्शक’ , ‘भुला-बिसरा राजा।
राव चन्द्रसेन और महाराण प्रताप में तुलना
राव चन्द्रसेन और महाराणा प्रताप दोनों मुगल बादशाह अकबर के साथ आजीवन संघर्ष के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके बारे में कहा गया है कि- अणदगिया तुरी ऊजला असमर, चाकर रहण न डिगियों चीत। सारे हिन्दुस्तान तण सिर पातल नै चन्द्रसेण प्रवीत॥
(अर्थात् उस समय सारे हिन्दुस्तान में महाराणा प्रताप और राव चन्द्रसेन, यही दो वीर ऐसे थे, जिन्होंने न तो अकबर की अधीनता स्वीकार की और न अपने घोड़ों पर शाही दाग लगने दिया तथा जिनके शस्त्र हमेशा ही मुगल-सम्राट के विरुद्ध चमकते रहे।
राव चन्द्रसेन की समाधी
राव चंद्रसेन की समाधि भाद्राजूण में स्थित है| के लिए संकटकालिन राजधानी के रूप में सिवाणा ( बाड़मेर ) तथा भाद्राजूड़ ( जालौर ) को महत्वपूर्ण माना जाता है |
तो दोस्तों कैसे लगी आपको राव चंदरसेन के बारे में यह छोटी सी जानकारी। आशा है की आपको पसंद आयी होगी। ऐसे ही इतिहास के बारे में छोटी छोटी कहानियों के बारे में और पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट के होमपेज पर क्लिक करे. धन्यवाद्