इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स(Electronic gadgets) ने इंसानों की जिंदगी बेहद आसान कर दी है। इन गैजेट्स की मदद से काम काफी हद तक कम होते जा रहे हैं, जिससे शारीरिक परिश्रम भी कम हो गया है। ऐसे में जहां एक तरफ यह लोगों को मनोरंजन देने के साथ उनके काम में भी हाथ बंटा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ यह लोगों को बीमार भी बना रहा है। जी हां, विशेषज्ञों का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से न सिर्फ व्यक्ति(Human Body) के शरीर और सेहत को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि इससे वह विकलांग भी हो सकते हैं।
मोबाइल फ़ोन का लम्बे समय तक उपयोग है जानलेवा
अध्ययन के निष्कर्ष ने यह भी संकेत दिया कि 50 प्रतिशत उपभोक्ता मोबाइल पर गतिविधि शुरू करने के बाद फिर कंप्यूटर पर काम शुरू कर देते हैं. भारत में इस तरह स्क्रीन स्विच करना आम बात है. मोबाइल फोन का लंबे समय तक उपयोग गर्दन में दर्द, आंखों में सूखेपन, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम और अनिद्रा का कारण बन सकता है. 20 से 30 वर्ष की आयु के लगभग 60 प्रतिशत युवाओं को अपना मोबाइल फोन खोने की आशंका रहती है, जिसे नोमोफोबिया कहा जाता है.
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ.के.के. अग्रवाल कहते हैं, “हमारे फोन और कंप्यूटर पर आने वाले नोटिफिकेशन, कंपन और अन्य अलर्ट हमें लगातार उनकी ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं. यह उसी तरह के तंत्रिका-मार्गो को ट्रिगर करने जैसा होता है, जैसा किसी शिकारी द्वारा एक आसन्न हमले के दौरान या कुछ खतरे का सामना करने पर होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि हमारा मस्तिष्क लगातार सक्रिय और सतर्क रहता है, लेकिन असामान्य तरह से.”
इलेक्ट्रॉनिक गैजेट है युवा में तनाव का कारण
बता दें ये गैजेट्स लोगों में तनाव का भी बड़ा कारण बन रहे हैं। मोबाइल, कंप्यूटर पर ज्यादा देर तक समय बिताने से लोग एक-दूसरे से अलग होते जाते हैं। यही नहीं इनके अधिक इस्तेमाल के कारण परिवारों में भी समस्याएं बढ़ रही हैं, जिसके चलते लोग तनाव का भी शिकार हो रहे हैं।
प्रोफेशनल्स में तो यह आदत और भी खतरनाक हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर लोगों को इस तरह की बीमारी से बचना है तो अपनी जीवनशैली में सुधार लाना होगा और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स पर डिपेंडेंसी को कम करना होगा। क्योंकि भविष्य में ये आदतें और भी खतरनाक रूप ले सकती हैं।
डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा, “गैजेट्स के माध्यम से सूचनाओं की इतनी अलग-अलग धाराओं तक पहुंच पाना मस्तिष्क के ग्रेमैटर डेंसिटी को कम करता है, जो पहचानने और भावनात्मक नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है. इस डिजिटल युग में, अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है मॉडरेशन, यानी तकनीक का समझदारी से उपयोग होना चाहिए. हम में से अधिकांश उन उपकरणों के गुलाम बन गए हैं जो वास्तव में हमें मुक्त करने और जीवन का अनुभव करने और लोगों के साथ रहने के लिए अधिक समय देने के लिए बने थे. हम अपने बच्चों को भी उसी रास्ते पर ले जा रहे हैं.”
उन्होंने कहा कि 30 प्रतिशत मामलों में स्मार्टफोन अभिभावक-बच्चे के बीच संघर्ष का एक कारण है. अक्सर बच्चे देर से उठते हैं और अंत में स्कूल नहीं जाते हैं. औसतन लोग सोने से पहले स्मार्ट फोन देखते हुए बिस्तर में 30 से 60 मिनट बिताते हैं.
इन बातों का रखे ध्यान :
- इलेक्ट्रॉनिक कर्फ्यू : मतलब सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग न करना.
- फेसबुक की छुट्टी : हर तीन महीने में 7 दिन के लिए फेसबुक प्रयोग न करें.
- सोशल मीडिया फास्ट : सप्ताह में एक बार एक पूरे दिन सोशल मीडिया से बचें.
- अपने मोबाइल फोन का उपयोग केवल तब करें जब घर से बाहर हों.
- एक दिन में तीन घंटे से अधिक कंप्यूटर का उपयोग न करें.
- अपने मोबाइल टॉक टाइम को एक दिन में दो घंटे से अधिक तक सीमित रखें.
- अपने मोबाइल की बैटरी को एक दिन में एक से अधिक बार चार्ज न करें.
- जब फ़ोन चार्जिंग में लगा हो या उसकी बैटरी लो हो रही हो तो उस दौरान बात करने से बचें।
- कुछ लोगों को मोबाइल पर अधिक समय तक बात करने की आदत होती है । बातचीत को छोटा रखने
का प्रयास करें । और जब जरूरी हो तभी बात करें। - लैपटॉप चार्ज हो रहा हो तो उस दौरान उसे अपनी जांघों पर रख कर काम करने की बजाय टेबल पर
उपयोग करें या फि र जांघ और लैपटॉप के बीच तकिया रखें।