मानव शरीर जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक अनेक परिवर्तनों से गुजरता है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती हैं, हमारा मेटाबोलिज्म और शरीर की प्रक्रियाएं धीमी हो जाती हैं जिससे मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियां हो सकती हैं। इससे स्वास्थ्य जांच करवाना और शरीर के लिए संक्रमण को आसान और स्वस्थ बनाना बेहद जरूरी हो जाता है। कार्य-जीवन संतुलन पर प्रहार करने की कोशिश कर रही महिलाओं के लिए तीसवां दशक एक महत्वपूर्ण समय है। काम के तनाव और अन्य अनगिनत जिम्मेदारियों से जुगलबंदी करना स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
1. थायरॉयड टेस्ट (Thyroid Test)
मौजूदा लाइफस्टाइल में 30 की उम्र के बाद महिलाओं को थायरॉयड का टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। क्योंकि थायरॉयड महिलाओं में होने वाली एक आम समस्या है। डॉक्टर शिल्पा का कहना हैं कि अगर आपको भी बिना वजह थकान, मसल्स पेन, भूख बढ़ने या घटने की समस्या हो रही है तो थायरॉयड टेस्ट के लिए टी3, टी4 और टीएसएच ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए। इस रिपोर्ट के द्वारा थायरॉयड की अधिकता व कमी का पता चलता है।
2. ब्लड प्रेशर टेस्ट (Blood Pressure Test)
30 की उम्र के बाद BP की समस्या हो जाती है, इसलिए महीने में एक बार बीपी चेक कराएं। हाई ब्लड प्रेशर के कारण किडनी, हार्ट और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है। ब्लड प्रेशर टेस्ट यह जांचने का एक आसान तरीका है कि आपका ब्लड प्रेशर बहुत अधिक है या बहुत कम। रक्तचाप शब्द का उपयोग उस ताकत का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिसके साथ आपका रक्त आपकी धमनियों के किनारों पर धकेलता है क्योंकि यह आपके शरीर के चारों ओर पंप होता है।
3. सीबीसी (Complete blood count)
सीबीसी यानी कम्प्लीट ब्लड काउंट। यह जांच खून से जुड़ी कई बीमारियों की जानकारी देती है। इसमें ब्लड में मौजूद लाल रक्त कणिकाएं, सफेद रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स की संख्या व उनका आकार देखा जाता है।अधिकतर टैस्ट से पहले कुछ तैयारी व सावधानी रखनी होती है। लेकिन सीबीसी में कोई परहेज जरूरी नहीं। यह जांच फाइव या थ्री पार्ट डिफरेंशियल मशीन से की जाती है। सीबीसी जांच के लिए ब्लड का सैंपल लेते हैं। यह जांच फाइव या थ्री पार्ट डिफरेंशियल मशीन से की जाती है। सीबीसी जांच के लिए ब्लड का सैंपल लेते हैं। ब्लड में सेल्स की संख्या व आकार के साथ हिमोग्लोबिन/हिमैटोक्रिट देखते हैं। इसके आधार पर रोग पकड़ में आता है।
4. डायबिटीज (Diabetes)
अगर आपने उम्र का 30 वां पड़ाव पार कर लिया है, आपका वजन ज्यादा है, डायबिटीज की फैमिली हिस्टरी है और प्रेग्नेंसी के दौरान आपको डायबिटीज रहा है तो साल में एक बार फास्टिंग और ब्लड शुगर लेवल चेक कराएं। बढ़ी हुई शुगर डायबिटीज का कारण बन सकती है। डायबिटीज (Diabetes) एक आजीवन रहने वाली बीमारी है। यह एक मेटाबॉलिक डिसॉर्डर है, जिसमें मरीज़ के शरीर के रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर बहुत अधिक होता है। जब, व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन (Insulin) नहीं बन पाता है और शरीर की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति ठीक से प्रतिक्रिया नहीं कर पाती हैं। जैसा कि, इंसुलिन का बनना शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रक्त से शरीर की कोशिकाओं में ग्लूकोज़ का संचार करता है। इसीलिए, जब इंसुलिन सही मात्रा में नहीं बन पाता तो पीड़ित व्यक्ति के बॉडी मेटाबॉलिज्म (Body Metabolism) पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
5. लिपिड प्रोफाइल (Lipid Profile)
लिपिड प्रोफाइल टेस्ट का इस्तेमाल लोगों में दिल संबंधी रोगों के जोखिम का पता लगाने के लिए किया जाता है. इसमें ब्लड टेस्ट होते हैं, जिनकी मदद से आपके ब्लड में मौजूद 4 तरह के लिपिड लेवल को मापा जाता है. लिपिड प्रोफाइल परीक्षण, के अंतर्गत्त कुल कोलेस्ट्राल, उच्च घनत्व कोलेस्ट्रॉल (हाई डेनसिटी लिक्विड कोलेस्ट्राल), निम्न घनत्व कोलेस्ट्रॉल, अति निम्न घनत्व कोलेस्ट्रॉल और ट्राय ग्लिसेराइड की जांच होती है। ये जांच नियमित रूप से हर साल करवानी चाहिये।
लिपिड प्रोफाइल टेस्ट के तहत पांच तरह के टेस्ट किए जाते हैं। जिसमें टोटल कोलेस्ट्रॉल, हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल), लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल), वैरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (वीएलडीएल) और ट्राइग्लिसराइड की जांच होती है। सभी टैस्ट के लिए सिर्फ एक ब्लड सैंपल ही काफी है। इसके बेहतर परिणाम के लिए टैस्ट से 12 घंटे पहले मरीज का खाली पेट होना जरूरी होता है।
(उपरोक्त लेख केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए है और इसका उद्देश्य पेशेवर चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। अपने स्वास्थ्य या किसी चिकित्सीय स्थिति के संबंध में अपने किसी भी प्रश्न के लिए हमेशा अपने चिकित्सक या अन्य योग्य स्वास्थ्य पेशेवर का मार्गदर्शन लें।)